“तेल की कीमत से व्यापार मार्ग तक ” पश्चिम एशिया में संघर्ष का भारत पर क्या और कितना असर: पढ़े पूरी खबर

दिल्ली। जहां इस्राइल ने ईरान के परमाणु ठिकानों से लेकर सैन्य अफसरों तक को एयरस्ट्राइक में निशाना बनाया, वहीं ईरानी सेना की तरफ से बैलिस्टिक मिसाइलों के जरिए इस्राइल पर कहर बरपाया गया है। अब तक की जानकारी के मुताबिक, इस्राइल में 24 से ज्यादा मौतें हो चुकी हैं। वहीं, ईरान में 220 लोगों की जान जाने की खबर है।इस पूरे घटनाक्रम पर भारत ने करीब से नजर रखी है। ईरान में फंसे अपने छात्रों को आर्मेनिया के रास्ते निकालने के बाद अब विदेश मंत्रालय ने तेहरान में रह रहे भारतीयों को शहर से बाहर किसी सुरक्षित स्थान पर रुकने को कहा है। इस बीच अमेरिका के भी इस जंग में कूदने की खबरें हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने सोमवार को चेतावनी देते हुए कहा कि ईरान के लोग जल्द से जल्द तेहरान छोड़ दें। ऐसे में यह जानना अहम है कि भारत ने पश्चिम एशिया में उभरी स्थिति के मद्देनजर अब तक कौन से कदम उठाए हैं? इस संघर्ष के पूर्णतः युद्ध का रूप लेने से भारत पर क्या-क्या असर हो सकता है? किन क्षेत्रों पर सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ेगा? 

1. इस्राइल-ईरान के बीच पूरी तरह युद्ध छिड़ जाने का भारत के लिए क्या मतलब?
इस्राइल और ईरान के बीच अगर यह संघर्ष पूरी तरह युद्ध में बदलता है तो इसका प्रभाव भारत पर भी पड़ने के आसार हैं। इतना ही नहीं दोनों देशों में भारतीयों की अच्छी-खासी संख्या, जो कि पूर्ण युद्ध की स्थिति में खतरे में पड़ सकती है। 

2. पुराने रिकॉर्ड तोड़ सकते हैं कच्चे तेल के दाम?
अमेरिका की तरफ से लगाए गए प्रतिबंधों के चलते भारत फिलहाल ईरान से कच्चा तेल आयात नहीं करता। लेकिन दुनियाभर में तेल के एक अहम सप्लायर के तौर पर चिह्नित ईरान से तेल की आपूर्ति रुकने से ओपेक देशों पर इसका भार पड़ेगा। नतीजतन तेल उत्पादक देश कच्चे तेल के दामों को बढ़ा सकते हैं। मौजूदा समय की बात की जाए तो ब्रेंट क्रूड 74-75 डॉलर प्रति बैरल पर है, जो कि पिछले बंद से करीब 1.5 फीसदी ज्यादा है।हालांकि, भारत की चिंता ईरान की तरफ से पश्चिमी देशों को दी गई एक धमकी है। ईरान ने कहा है कि वह होर्मुज जलडमरूमध्य को बंद कर देगा। लाल सागर के अलावा इस बार होर्मुज जलडमरूमध्य से होकर गुजरने वाला मार्ग एक ऐसा कारक है, जो फारस की खाड़ी को ओमान की खाड़ी और अरब सागर से जोड़ता है। वैश्विक पेट्रोलियम पदार्थों की खपत का 21% इसी मार्ग से गुजरता है। भारत, चीन, जापान और दक्षिण कोरिया इस मार्ग से कच्चे तेल की आपूर्ति के लिए शीर्ष गंतव्य हैं। ओमान भी भारत को तरलीकृत प्राकृतिक गैस की आपूर्ति के लिए इसी मार्ग का इस्तेमाल करता है।

3. इस्राइल-ईरान संघर्ष बढ़ा तो व्यापार पर कैसे पड़ेगा असर?
यूरोप के साथ भारत का करीब 80 फीसदी वस्तु व्यापार लाल सागर के जरिये होता है। अमेरिका के साथ भी काफी व्यापार इसी मार्ग से होता है। लाल सागर और होर्मुज जलडमरूमध्य इन दोनों भौगोलिक क्षेत्रों के जरिये भारत कुल 34 फीसदी निर्यात करता है। लाल सागर मार्ग से दुनिया के 30 फीसदी कंटेनर गुजरते हैं, जबकि 12 फीसदी वैश्विक व्यापार इसी रास्ते हो होता है।हाल के घटनाक्रमों पर चर्चा करने के लिए सरकार की ओर से आने वाले दिनों में निर्यातकों के साथ बैठक करने की उम्मीद है।

वैश्विक व्यापार में पहले ही गिरावट की आशंका
विश्लेषकों का कहना है कि यह युद्ध अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के उच्च टैरिफ की घोषणा के बाद वैशि्वक व्यापार पर पड़ने वाले दबाव को और बढ़ाता है। टैरिफ के असर को देखते हुए विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) पहले ही आशंका जता चुका है कि 2025 में वैश्विक व्यापार में 0.2 फीसदी की गिरावट आएगी। इससे पहले 2.7 फीसदी की बढ़ोतरी का अनुमान लगाया गया था।

4. उड्डयन क्षेत्र में भी खड़ी होंगी मुश्किलें?
ईरान और इस्राइल एक-दूसरे पर जबरदस्त हवाई हमले कर रहे हैं। इसके चलते दोनों ही देशों ने अपने हवाई क्षेत्रों को यात्री विमानों की आवाजाही के लिए बंद कर दिया है। इसका असर दुनियाभर के साथ भारत के उड्डयन क्षेत्र में सबसे ज्यादा पड़ सकता है। उदाहरण के तौर पर भारत के नई दिल्ली से ब्रिटेन के लंदन जाने वाली फ्लाइट को अभी ईरान के एयरस्पेस से उड़ान भरते हुए जाना होता है, जो कि सबसे सीधा और आसान रास्ता है। हालांकि, रूट बदलने से न सिर्फ यात्रियों के लिए यात्रा का समय बदलता है, बल्कि एयरलाइन कंपनियों को अपना किराया भी बढ़ाना पड़ता है, क्योंकि लंबे रूट्स पर ईंधन का खर्च भी ज्यादा होता है और क्रू के सदस्यों के काम की समयसीमा भी ज्यादा होती है। 

हालांकि, मौजूदा स्थिति में भारत की एयरलाइन कंपनियों को तुर्कमेनिस्तान या सऊदी अरब का रूट लेना पड़ रहा है, जिसके चलते नए रूट से फ्लाइट्स को गंतव्य तक पहुंचने में 45 से 90 मिनट तक ज्यादा लग रहे हैं। इसे लेकर भारतीय विमानन कंपनी इंडिगो ने कहा है कि खाड़ी देशों में मौजूदा स्थिति के चलते यात्रा के समय में बढ़ोतरी होगी। इसी तरह एयर इंडिया ने भी एडवायजरी में कहा कि ईरान और पश्चिम एशिया के कुछ हिस्सों में स्थितियों को देखते हुए फिलहाल फ्लाइट्स लंबे और वैकल्पिक रूट पर चल रही हैं, ताकि यात्रियों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।

बीते पांच दिनों में कितना बढ़ गया इस्राइल-ईरान के बीच संघर्ष?

दिन-1: 13 जून 2025
इस्राइल ने शुक्रवार सुबह ईरान पर एयरस्ट्राइक की और उसके नतांज परमाणु ठिकाने और उसके सेना प्रमुख-वायुसेना प्रमुख और विशेष सेना रिवोल्यूशनरी गार्ड के चीफ समेत कई सैन्य अफसरों को निशाना बनाया। 

दिन-2: 14 जून 2025
ईरान ने इस्राइल पर ड्रोन्स और बैलिस्टिक मिसाइलों के जरिए पलटवार किया। तेल अवीव और यरुशलम में कई जगहों पर धमाकों की आवाज सुनी गई। इस्राइल ने एक बार फिर ईरान पर एयरस्ट्राइक कीं।

दिन-3: 15 जून 2025
इस्राइल ने रविवार को भी ईरान पर हमले जारी रखे। इस दिन ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर अमेरिका से होने वाली बातचीत को तेहरान ने रद्द कर दिया। इसी दिन खुलासा हुआ कि इस्राइल ने ईरान के सुप्रीम लीडर अयातुल्ला अली खामनेई को मारने की साजिश रची थी। हालांकि, ट्रंप ने इसे रोक दिया।

ईरान ने कहा कि इस्राइल ने उसकी दो तेल रिफाइनरीज पर एयरस्ट्राइक कीं। तेहरान की तरफ से जवाब में इस्राइली बेसों पर 270 मिसाइलें दागी गईं, जो कि मुख्य शहरों में रक्षा शील्ड को भेद गईं। 

दिन-4: 16 जून 2025
ईरान के हमले में हाईफा, पेताह और टिकवा तक दर्ज हुए। इसमें कई लोगों के मारे जाने और घायल होने की खबरें सामने आईं। उधर इस्राइल ने दावा किया कि उसने ईरान के एयरस्पेस पर पूरी तरह अभियानगत स्वतंत्रता हासिल कर ली है। इस्राइली सेना ने कहा कि उसने ईरान के हथियारों के जखीरे को खत्म कर दिया। इसी दिन ईरान के एक सरकारी न्यूज चैनल के दफ्तर पर हमला बोल दिया। इसमें कुछ लोगों के मारे जाने की खबर आई है। 

दिन-5: 17 जून 2025
ईरान में फंसे छात्रों को निकालने में भारत को बड़ी सफलता मिली। करीब 110 छात्र ईरान के जमीनी बॉर्डर से आर्मेनिया पहुंचे, जहां से उन्हें विमानों के जरिए दिल्ली लाया जाएगा। इस बीच भारत ने तेहरान में रह रहे अपने लोगों से शहर से बाहर जाने और सुरक्षित ठिकाना ढूंढने की अपील की। साथ ही भारतीय दूतावास से लगातार संपर्क में रहने को भी कहा गया। इसके लिए दूतावास की तरफ से आपात हेल्पलाइन जारी की गई है।17 जून यानी मंगलवार को जी7 देशों की बैठक तय थी। हालांकि, डोनाल्ड ट्रंप इस सम्मेलन को बीच में ही छोड़कर अमेरिका लौट गए।

इस दौरान उन्होंने जी7 के उस साझा बयान पर हस्ताक्षर किए, जिसमें पश्चिम एशिया में संघर्ष को रोकने की अपील की गई। ट्रंप ने रवाना होने के बाद साफ किया कि उनके लौटने की वजह इस्राइल और ईरान के बीच संघर्षविराम कराने से नहीं जुड़ी है, बल्कि यह वजह और भी बड़ी है। दूसरी तरफ ईरान ने दावा किया है कि उसने तेहरान में मोसाद के दो एजेंट्स को पकड़ा है, जो कि ड्रोन बनाने वाली फैक्टरी चला रहे थे। इनके पास से 200 किलो विस्फोटक, ड्रोन्स और लॉन्चर्स से जुड़े उपकरण मिले हैं।

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