‘मतदान केंद्रों के वीडियो फुटेज की निजता का उल्लंघन” चुनाव आयोग की दो टूक

दिल्ली। मतदान केंद्रों की वेबकास्टिंग फुटेज सार्वजनिक करने की मांग के बीच चुनाव आयोग ने बड़ा बयान दिया है। निर्वाचन आयोग के अधिकारियों ने शनिवार को कहा कि ऐसा कदम मतदाताओं की निजता और सुरक्षा संबंधी चिंताओं का उल्लंघन है। उन्होंने कहा कि इस तरह की मांग उनकी धारणा के लिए ठीक है, जो मतदाता हितैषी और लोकतांत्रिक प्रक्रिया की सुरक्षा के लिए उपयुक्त लगती हैं, लेकिन वास्तव में इसका मकसद बिल्कुल विपरीत उद्देश्य को प्राप्त करना है। अधिकारियों ने दावा किया कि जिसे बहुत तार्किक मांग के रूप में पेश किया जा रहा है, वह वास्तव में मतदाताओं की निजता और सुरक्षा संबंधी चिंताओं का उल्लंघन है। यह जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 और 1951 में निर्धारित कानूनी स्थिति और शीर्ष कोर्ट के निर्देशों के पूरी तरह विपरीत है। उन्होंने जोर देकर कहा कि फुटेज को साझा करने से मतदाता और मतदाता न होने वाले लोग दोनों ही असामाजिक तत्वों के निशाने पर आ सकते हैं। इससे किसी भी समूह या व्यक्ति की ओर से मतदाताओं की पहचान करना आसान हो जाएगा।

चुनाव आयोग ने उदाहरण के साथ समझाया
उदाहरण के तौर पर उन्होंने कहा कि यदि किसी विशेष राजनीतिक दल को किसी विशेष बूथ पर कम वोट मिलते हैं तो वह सीसीटीवी फुटेज के माध्यम से आसानी से पहचान सकता है कि किस मतदाता ने वोट दिया है और किस मतदाता ने नहीं। उसके बाद उन्हें परेशान या धमकाया जा सकता है। निश्चित रूप से चुनाव आयोग सीसीटीवी फुटेज को 45 दिनों की अवधि के लिए अपने पास रखता है, जो पूरी तरह से एक आंतरिक प्रबंधन है। यह अनिवार्य आवश्यकता नहीं है। यह प्रक्रिया भी चुनाव याचिका दायर करने के लिए निर्धारित अवधि की वजह से  है।

45 दिनों तक फुटेज को सहेजने की वजह बताई
अधिकारियों ने साफ किया कि परिणाम की घोषणा के 45 दिनों के बाद किसी भी चुनाव को चुनौती नहीं दी जा सकती है। इसलिए इस अवधि से अधिक समय तक फुटेज को अपने पास रखने से गैर-प्रतियोगियों कर ओर से गलत सूचना और दुर्भावनापूर्ण खबरें फैलाने के लिए सामग्री का दुरुपयोग होने की संभावना बढ़ जाती है। उन्होंने कहा कि यदि 45 दिनों के भीतर चुनाव याचिका दायर की जाती है, तो सीसीटीवी फुटेज को नष्ट नहीं किया जाता है और मांगे जाने पर इसे सक्षम न्यायालय को भी उपलब्ध कराया जाता है।

‘मतदाता की गोपनीयता बनाए रखना चुनाव आयोग का कर्तव्य’
पदाधिकारियों ने कहा कि मतदाता की गोपनीयता बनाए रखना चुनाव आयोग के लिए अपरिहार्य है। आयोग ने कानून में निर्धारित इस आवश्यक सिद्धांत पर कभी समझौता नहीं किया है, जिसे सर्वोच्च न्यायालय ने भी बरकरार रखा है। अपने इलेक्ट्रॉनिक डेटा के दुर्भावनापूर्ण जरिया बनने के डर से चुनाव आयोग ने अपने राज्य चुनाव अधिकारियों को निर्देश दिया है कि यदि उस अवधि के भीतर अदालतों में फैसले को चुनौती नहीं दी जाती है, तो वे 45 दिनों के बाद चुनाव प्रक्रिया के सीसीटीवी कैमरे, वेबकास्टिंग और वीडियो फुटेज को नष्ट कर दें।

विपक्ष उठाता रहा है सवाल
यह टिप्पणी कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों की ओर से 2024 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में मतदान केंद्रों से शाम 5 बजे के बाद सीसीटीवी फुटेज जारी करने की मांग को लेकर आई है। पिछले साल दिसंबर में सरकार ने सीसीटीवी कैमरों और वेबकास्टिंग फुटेज के साथ-साथ उम्मीदवारों की वीडियो रिकॉर्डिंग जैसे कुछ इलेक्ट्रॉनिक दस्तावेजों के सार्वजनिक निरीक्षण को रोकने के लिए एक चुनाव नियम में बदलाव किया था, ताकि उनका दुरुपयोग रोका जा सके।

राहुल गांधी ने सोशल मीडिया पर क्या कहा?
राहुल गांधी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, ‘मतदाता सूची? मशीन-रीडेबल फॉर्मेट नहीं देंगे। सीसीटीवी फुटेज? कानून बदल कर छिपा दी। चुनाव की फोटो और वीडियो? अब 1 साल नहीं, 45 दिन में मिटा देंगे। जिससे जवाब चाहिए था – वही सबूत मिटा रहा है।’ उन्होंने आगे लिखा, स्पष्ट है कि मैच फिक्स है। और फिक्स किया गया चुनाव लोकतंत्र के लिए जहर है। 

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